Tuesday, August 19, 2014

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है डॉ. कुमार विश्वास

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है





डॉ कुमार विश्वास 

Saturday, August 2, 2014

तडपन, पीर, उदासी, आँसूं ..डॉ. कुमार विश्वास

तडपन, पीर, उदासी, आँसूं


तडपन, पीर, उदासी, आँसूंबेचैनी, उपवास, अमावस,
अजब प्रीत का मौसम मन में पतझर है,
नयनों में पावसइस अलमस्त जुगलबंदी से बाहर,
कुछ भी प्रीत नहीं हैये सब सच है

गीत नहीं है..............................................

लोग मिले कितने अनगाये,
कितने उलझ-उलझ सुलझाये ,
कितनी बार डराने पहुंचे ,
आखों तक कुछ काले साये ,
जो इन का युगबोध न समझे,
साथी होगा मीत नहीं है !
ये सब सच है गीत नहीं है.......


अपमानों कि सरस कहानी ,
जग भर को है याद ज़ुबानी
और विजय के उद्घोषों पर
दुनिया की यूँ आनकानी ,
खुद से अलग लड़े युद्धों में जीत मिली,
पर जीत नहीं है ,
ये सब सच है
गीत नहीं है..........................................


डॉ. कुमार विश्वास