राष्ट कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं
"चल रहा था महाभारत का रण जल रहा धरती
का सुहाग पर कुरुक्षेत्र में खेल रही नर के भीतर
की कुटिल आग बज़िओ गजो की लोथो में
गिर रहे मनुष्य के क्षिड रहे अंग बह रहा में रहा
चुतरपश और विपद मिश्र का एक संग तवतर
कह रही यावतार भूदर से रक्त रंगत शरीर झूज
रहे कोंतिया कन्द क्षण क्षण करते कबीर इतने
में सरके लिए करण ने ज्यों देखा निशंक तरकश
में से फुंकार उठा कोई प्रचंड विषधर भुजंग कहता
करण में अंशव क्षेम विशुद्ध भुजंगों का स्वामी हूँ
जनम से पार्थ का शत्रु और परम तेरा बहुविध स्वामी
हूँ बस एक बार कर्प्या कर धनुष पर चढ़ शरबय तक
जाने दे कर वमन गरल जीवन भर का सचित प्रतिशोद
उत्तरुंगा तू मुझे सहारा दे में तुरंत पार्थ को मारूंगा राधेय
यह जरा हंस कर बोला रे कुटिल बात क्या कहता हैं
नर का समस्त साधन जय का अपनी बाहों में रहता हैं
जीवन भर निष्ठा पाली उस का क्षार करूँ.तेरी सहायता से
जय तो में अनायास ही पा जाऊँगा. पर आने वाली मानवता
को किया मुख दिलाऊंगा सन्सार केह्गा जीवन सब सुखद
करन ने क्षार किया प्रतिभट का वध का सर्पो का सहया लिया हैं
अशुदेव तेरे अनेक वशंज हैं छिपे नरो में भी ये प्रतिभट के वध
के लिए ये नीच नर बुजंग मानवता का पथ कठिन बहुत कर देते हैं
नीच सहाय ये सर्प का लेते हैं "
"चल रहा था महाभारत का रण जल रहा धरती
का सुहाग पर कुरुक्षेत्र में खेल रही नर के भीतर
की कुटिल आग बज़िओ गजो की लोथो में
गिर रहे मनुष्य के क्षिड रहे अंग बह रहा में रहा
चुतरपश और विपद मिश्र का एक संग तवतर
कह रही यावतार भूदर से रक्त रंगत शरीर झूज
रहे कोंतिया कन्द क्षण क्षण करते कबीर इतने
में सरके लिए करण ने ज्यों देखा निशंक तरकश
में से फुंकार उठा कोई प्रचंड विषधर भुजंग कहता
करण में अंशव क्षेम विशुद्ध भुजंगों का स्वामी हूँ
जनम से पार्थ का शत्रु और परम तेरा बहुविध स्वामी
हूँ बस एक बार कर्प्या कर धनुष पर चढ़ शरबय तक
जाने दे कर वमन गरल जीवन भर का सचित प्रतिशोद
उत्तरुंगा तू मुझे सहारा दे में तुरंत पार्थ को मारूंगा राधेय
यह जरा हंस कर बोला रे कुटिल बात क्या कहता हैं
नर का समस्त साधन जय का अपनी बाहों में रहता हैं
जीवन भर निष्ठा पाली उस का क्षार करूँ.तेरी सहायता से
जय तो में अनायास ही पा जाऊँगा. पर आने वाली मानवता
को किया मुख दिलाऊंगा सन्सार केह्गा जीवन सब सुखद
करन ने क्षार किया प्रतिभट का वध का सर्पो का सहया लिया हैं
अशुदेव तेरे अनेक वशंज हैं छिपे नरो में भी ये प्रतिभट के वध
के लिए ये नीच नर बुजंग मानवता का पथ कठिन बहुत कर देते हैं
नीच सहाय ये सर्प का लेते हैं "