Sunday, May 25, 2014

राधा कृष्ण पर कविता डॉ. कुमार विश्वास द्वारा

हो काल गति से परे चिरंतन अभी यहा थे अभी यही हों ......
कभी  धरा  पर  कभी  गगन  में 
कभी  कहाँ  थे  कभी  कहीं  हो ..
तुम्हारी  राधा  को  भान  हैं 
तुम  सकल  चराचर  में  हो  समाये
बस  एक  मेरा  हैं  भाग्य  मोहन  की 
जिसमे  होकर  भी  तुम  नहीं  हो

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हों  कालगत  से  परे  चिरंतन 
अभी  यहाँ  थे  अभी  यही  हो ..
ना  द्वारका   में  मिले  विराजे
बिरज  की  गलियों  में  भी  नहीं  हो
ना  योगियों  के  हो  ध्यान  में  तुम
अहम  जड़े  ज्ञान  में  नहीं  हो
तुम्हे  यह  जग  ढूंढ़ता  हैं  मोहन
मगर  इसे  यह  खबर  नहीं  हैं
बस  एक  मेरा  हैं  भाग्य  कान्हा
अगर  कहीं  हो  तुम  यहीं  हो .....

हो काल गति से परे चिरंतन अभी यहा थे अभी यही हों ......

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