Tuesday, October 14, 2014

लडकिया जैसे पहला प्यार , लडकिया जैसे पहला प्यार .........डॉ कुमार विश्वास


लडकिया  जैसे  पहला  प्यार , लडकिया  जैसे  पहला  प्यार 


पल  भर  मैं  जीवन  महकाए, पल  भर  में संसार  जलाये,

कभी  धुप  है  कभी  छाँव  है , कर्क  कभी  अंगार ,

लडकिया  जैसे  पहला  प्यार , लडकिया  जैसे  पहला  प्यार .

बचपन  के  जाते  ही  इनकी , गंध  बसे  तन  मन  मैं ,

एक  कहानी  लिख  जाती  है  ये  सब  के  जीवन  मैं ,

बचपन  की  ये फिज़ा निराली , योवन  का  उपहार ,

लडकिया  जैसे  पहला  प्यार , लडकिया  जैसे  पहला  प्यार .



इनके  निर्णय  बड़े  गजब  है  बड़ी  अजब  हैं   बाते ,

दिन   की  कीमत  पर  लेती  है रख  लेती  है  रातें ,

हॅसते  गाते  कर  जाती  है  आंसू  का  व्यापार ,

लडकिया  जैसे  पहला  प्यार , लडकिया  जैसे  पहला  प्यार .

जाने  कैसे  कब  कर  बैठे  जान  बुझ  कर  भूले ,

किसे  प्यास  से  व्याकुल  कर  दे  किसे  अधर   से  छूले,

किसका  जीवन  मरुथल  कर  दे  किसका  मस्त  बहार ,

लडकिया  जैसे  पहला  प्यार , लडकिया  जैसे  पहला  प्यार .

राजा  के  सपने  मन  मैं  है  और  फकीरो  संग  है ,

जीवन  औरो  के  हाथो  मैं  खींची  लकीरो  संग  है ,

सपनो  की  जग  मग  जग  मग  है , किस्मत  सी  लाचार ,

लडकिया  जैसे  पहला  प्यार , लडकिया  जैसे  पहला  प्यार





Tuesday, August 19, 2014

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है डॉ. कुमार विश्वास

बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है

तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊँगा
साँस साथ छोडेगी, सुर सजा न पाऊँगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है


तुम अलग हुई मुझसे साँस की ख़ताओं से
भूख की दलीलों से वक्त की सज़ाओं से
दूरियों को मालूम है दर्द कैसे सहना है
आँख लाख चाहे पर होंठ से न कहना है
कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण है
बाँसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है





डॉ कुमार विश्वास 

Saturday, August 2, 2014

तडपन, पीर, उदासी, आँसूं ..डॉ. कुमार विश्वास

तडपन, पीर, उदासी, आँसूं


तडपन, पीर, उदासी, आँसूंबेचैनी, उपवास, अमावस,
अजब प्रीत का मौसम मन में पतझर है,
नयनों में पावसइस अलमस्त जुगलबंदी से बाहर,
कुछ भी प्रीत नहीं हैये सब सच है

गीत नहीं है..............................................

लोग मिले कितने अनगाये,
कितने उलझ-उलझ सुलझाये ,
कितनी बार डराने पहुंचे ,
आखों तक कुछ काले साये ,
जो इन का युगबोध न समझे,
साथी होगा मीत नहीं है !
ये सब सच है गीत नहीं है.......


अपमानों कि सरस कहानी ,
जग भर को है याद ज़ुबानी
और विजय के उद्घोषों पर
दुनिया की यूँ आनकानी ,
खुद से अलग लड़े युद्धों में जीत मिली,
पर जीत नहीं है ,
ये सब सच है
गीत नहीं है..........................................


डॉ. कुमार विश्वास 




Sunday, May 25, 2014

राधा कृष्ण पर कविता डॉ. कुमार विश्वास द्वारा

हो काल गति से परे चिरंतन अभी यहा थे अभी यही हों ......
कभी  धरा  पर  कभी  गगन  में 
कभी  कहाँ  थे  कभी  कहीं  हो ..
तुम्हारी  राधा  को  भान  हैं 
तुम  सकल  चराचर  में  हो  समाये
बस  एक  मेरा  हैं  भाग्य  मोहन  की 
जिसमे  होकर  भी  तुम  नहीं  हो

..................................................................................................
हों  कालगत  से  परे  चिरंतन 
अभी  यहाँ  थे  अभी  यही  हो ..
ना  द्वारका   में  मिले  विराजे
बिरज  की  गलियों  में  भी  नहीं  हो
ना  योगियों  के  हो  ध्यान  में  तुम
अहम  जड़े  ज्ञान  में  नहीं  हो
तुम्हे  यह  जग  ढूंढ़ता  हैं  मोहन
मगर  इसे  यह  खबर  नहीं  हैं
बस  एक  मेरा  हैं  भाग्य  कान्हा
अगर  कहीं  हो  तुम  यहीं  हो .....

हो काल गति से परे चिरंतन अभी यहा थे अभी यही हों ......

Saturday, April 26, 2014

Dr. Kumar Vishwas Giving Strong Message through "Rastrakavi Dr. Ramdhari Singh Dinkar" to all indian people.must watch video

राष्ट कवि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं

"चल रहा था महाभारत का रण जल रहा धरती
का सुहाग पर कुरुक्षेत्र में खेल रही नर के भीतर
 की कुटिल आग बज़िओ गजो की लोथो में
गिर रहे मनुष्य के क्षिड रहे अंग बह रहा में रहा
चुतरपश और विपद मिश्र का एक संग तवतर
कह रही यावतार भूदर से रक्त रंगत शरीर झूज
 रहे कोंतिया कन्द क्षण क्षण करते कबीर इतने
में सरके लिए करण ने ज्यों देखा निशंक तरकश
में से फुंकार उठा कोई प्रचंड विषधर भुजंग कहता
करण में  अंशव क्षेम विशुद्ध भुजंगों का स्वामी हूँ


जनम से पार्थ का शत्रु और परम तेरा बहुविध स्वामी
हूँ बस एक बार कर्प्या कर धनुष पर चढ़ शरबय तक
जाने दे कर वमन गरल जीवन भर का सचित प्रतिशोद
उत्तरुंगा तू मुझे सहारा दे में तुरंत  पार्थ को मारूंगा राधेय
 यह जरा हंस कर बोला रे कुटिल बात क्या कहता हैं
नर का समस्त साधन जय का अपनी बाहों में रहता हैं
 जीवन भर निष्ठा पाली उस का क्षार करूँ.तेरी सहायता से
जय तो में अनायास ही पा जाऊँगा. पर आने वाली मानवता
को किया मुख दिलाऊंगा सन्सार केह्गा जीवन सब सुखद
करन ने क्षार किया प्रतिभट का वध का सर्पो का सहया लिया हैं
 अशुदेव तेरे अनेक वशंज हैं छिपे नरो में भी ये प्रतिभट के वध
के लिए ये नीच नर बुजंग मानवता का पथ कठिन बहुत कर देते हैं
 नीच सहाय ये सर्प का लेते हैं "

Thursday, April 24, 2014

Dr. Kumar Vishwas New Poem...हम है देसी हम है देसी हम है देसी

एशिया  के  हम  परिंदे , आसमा  है  हद  हमारी ,
जानते  है  चाँद  सूरज , जिद  हमारी  ज़द  हमारी ,
हम  वही  जिसने  समंदर  की , लहर  पर  बाँध  साधा ,
हम  वही  जिनके  के  लिए  दिन , रात  की  उपजी  न  बाधा,
हम  की  जो  धरती  को  माता , मान  कर  सम्मान  देते ,
हम  की  वो  जो  चलने  से  पहले , मंजिले  पहचान  लेते ,
हम  वही  जो  शून्य  मैं  भी , शून्य  रचते  हैं   निरंतर ,
हम  वही  जो  रौशनी  रखते , है  सबकी  चौखटों   पर ,
उन  उजालो  का  वही , पैगाम  ले  ए  है  हम ,
हम  है  देसी  हम  है  देसी  हम  है  देसी ,
हा  मगर  हर  देश  छाए  है  हम ………




ज़िंदा  रहने  का  असल  अंदाज़ , सिखलाये  है  हमने ,
ज़िंदगी  है  ज़िंदगी  के , बाद  समझाया  है  हमने ,
हमने  बतलाया  की , कुदरत  का  असल  अंदाज़  क्या  है ,
रंग  क्या  है  रूप  क्या  है , महक  क्या  है  स्वाद  क्या  है ,
हमने  दुनिया  मोहबत , का  असर  ज़िंदा  किया  है ,
हमने  नफरत  को  गले  मिल , मिल  के  शर्मिंदा  किया  है ,
इन  तरर्की  के  खुदाओं , ने  तो  घर  को  दर  बनाया ,
इन  पड़े  खली  मकानो , को  हमी  ने  घर  बनाया ,
हम  न  आते  तो  तरकी , इस  कदर  न  बोल  पति ,
हम  न  आते  तो  ये  दुनिया , खिड़किया  न  खोल  पति ,
है  यसोदा  के  यह  पर , देवकी  जाये  है  हम ,
हम  है  देसी  हम  है  देसी  हम  है  देसी ,
हा  मगर  हर  देश  छाए  है  हम …………….

Wednesday, April 23, 2014

Dr. kumar vishwas famous poem होठों पर गंगा हो, हाथों मैं तिरंगा हो

शोहरत ना अता करना मौला,दौलत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे,जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों मे तिरंगा हो



बस एक सदा ही उठे सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं मैं
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते तपते सहराओं मैं
जीते जी इसका मान रखे, मारकर मर्यादा याद रहे
हम रहे कभी ना रहे मगर, इसकी सज धज आबाद रहे
गोधरा ना हो, गुजरात ना हो, इंसान ना नंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों मैं तिरंगा हो.

गीता का ज्ञान सुने ना सुने
इस धरती का यश्गान सुने
हम शबद कीर्तन सुन ना सके
भारत माँ का जय गान सुने
परवरदिगार मैं तेरे द्वार
कर लो पुकार ये कहता हूँ
चाहे अज़ान ना सुने कान पर जय जय हिन्दुस्तान सुने
जन मन मे उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो
हाथों मे तिरंगा हो



Tuesday, April 22, 2014

Dr.Kumar vishwas latest poem ...इतनी रंग बिरंगी दुनिया, दो आखों में कैसे आये

इतनी रंग बिरंगी दुनिया,
दो आखों में कैसे आये |
हमसे पूछो इतने अनुभव,
एक कंठ से कैसे गाये |

ऐसे  उजले लोग मिले जो,
अन्दर से बेहद काले थे |
ऐसे चतुर लोग मिले जो,
मन से भोले भाले थे |
ऐसे धनी लोग मिले जो,
कंगलो से भी जयादा रीते थे |
ऐसे मिले फकीर जो,
सोने के घट में पानी पीते थे |

मिले परायेपन से अपने,
अपनेपन से मिले पराये |
हमसे पूछो इतने अनुभव,
एक कंठ से कैसे गाये |




जिनको जगत विजेता समझा,  
मन के हारे धारे निकले |
जो हारे हारे लगते थे,
अन्दर से ध्रुव तारे निकले |
जिनको पतवारें सौपी थी,
वे भवरों के सूदखोर थे |
जिनको भावर समझ डरता था,
आखिर वही किनारे निकले |

वे मंजिल तक क्या पहुंचेंगे,
जिनको खुद रास्ता भटकाए |
हमसे पूछो इतने अनुभव,
एक कंठ से कैसे गाये | 

Dr. Kumar Vishwas very famous Poem-क्या अजब रात थी ,क्या गज़ब रात थी

क्या  अजब  रात  थी ,क्या  गज़ब  रात  थी ,
दंश  सहते  रहे ,मुस्कुराते   रहे ,
देह  की  उर्मियाँ  बन  गयीं  भगवत ,
हम  समर्पण  भरे  अर्थ  पाते  रहे

मन  मैं  अपराध  की  एक  शंका  लिए ,
कुछ  क्रियाएँ  हमे  जब  हवन  सी  लॉगिन ,
एक  दूजे  की  साँसों  मैं  घुलती  हुई
बोलियाँ  भी  हमे  जब  भजन  सी  लॉगिन

कोई  भी  बात  हमने  न  की  रात  भर ,
प्यार  की  धुन  कोई  गुनगुनाते  रहे ,
देह   की  उर्मियाँ  बन  गयीं  भगवत
हम  समर्पण  भरे  अर्थ  पाते  रहे




पूर्णिमा  की  अनघ  चांदनी  सा  बदन
मेरे  आगोश  मैं  यूँ  पिघलता  रहा
चूड़ियों   से  भरे  हाथ  लिपटे  रहे
सुर्ख  होंठों  से  झरना  सा  झरता  रहा

एक  नशा  सा  अजब  छा  गया  था  की  हम
खुद  को  खोते  रहे  तुम  को  पाते  रहे ,
देह  की  उर्मियाँ  बन  गयीं  भगवत ,
हम  समर्पण  भरे  अर्थ  पाते  रहे

आहटों  से  बहुत  दूर  पीपल  टेल
वेग  के  व्याकरण  पायलों  ने  गढे
शाम  गीतों  के  आरोह  अवरोह  मैं
मौन  के  चुम्बनी  सूक्त  हमने  पढ़े

सौंप  कर  उन  अंधेरों  को  सब  प्रश्न  हम
एक  अनोखी  दिवाली  मानते  रहे
देह  की  उर्मियाँ  बन  गयीं  भगवत
हम  समर्पण  भरे  अर्थ  पाते  रहे

DR. KUMAR VISHWAS POEM हार गया तन मन पुकारकर तुम्हें .

हार गया तन मन पुकारकर तुम्हें .
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें 

जिस पल हल्दी लिपि होगे तन पर माँ ने 
जिस पल सखियों ने सौंपी होंगी सौगातें 
ढोलक की थापों में, घुंघरू की रुनाझां में 
घुल कर फ़ैली होंगी घर में प्यारी बातें 

उस पल मीठी सी धून 
घर के आँगन में सुन 
रोये मन - चौसर पर हारकर तुम्हें 
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें 


कल तक जो हमको तुमको मिलवा देती थीं 
उन सखियों के प्रश्नों ने टोका तो होगा 
साजन की अंजुरी पर, अंजुरी काँपी होगी
मेरी सुधियों ने रास्ता रोका तो होगा

उस पल सोचा मन में
आगे अब जीवन में 
जी लेंगे हंसकर, बिसार कर तुम्हें 
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें 

कल तक जिन गीतों को तुम अपना कहते थे
अखबारों में पढ़कर कैसा लगता होगा
सावन की रातों में, साजन की बाहों में 
तन तो सोता होगा पर मन जागता होगा

उस पल के जीने में 
आंसू पी लेने में 
मरते हैं, मन ही मन, मार कर तुम्हें 
कितने एकाकी  हैं प्यार कर तुम्हें 

हार गया तन मन पुकार कर तुम्हें 
कितने एकाकी हैं प्यार कर तुम्हें



Dr. kumar vishwas latest poem, Har ek khone har ek pane me teri yaad aati hai.

Har ek khone har ek pane me teri yaad aati hai,
Namak aankho me ghul jane me teri yaad aati hai,
Teri amrit bhari lehro ko kya malum ganga maa,
Samundar paar veerane me teri yaad aati hai,

Har ek khali pade aalind teri yaad aati hai,
Subah ke khwab ke manind teri yaad aati hai,
Hello , hey , hii kahta hai nahi aati magar,
Koi kahta hai jab jai hind teri yaad aati hai,













Sujhaye maa jo muhurat teri yaad aati hai,
Hanse gar budhh ki murat to teri yaad aati hai,
Kahi dollar ke piche chup gaye bharat ke noto par,
Dikhe gandhi ki jab surat toh teri yaad aati hai,

Koi dekhe janam-patri toh teri yaad aati hai,
Koi rag rag me savitri toh teri yaad aati hai,
Achanak muskilon me hath jode aankh munde jab,
Koi japta hai gaytri toh teri yaad aati hai,

Agar mausam ho manbhawan toh teri yaad aati hai,
Jhare megho se gar saawan toh teri yaad aati hai,
Kahi rahman ki jai ho sunkar garv ke aansu,
Kare jab paawan toh teri yaad aati hai...

Kumar vishwas New Poem " Koi Manzil Nahi jachti suffer achha nahi lagta "

"Koi Manzil Nahi Jachti, Safar Achcha Nahi Lagta ,

Agar Ghar Laut Bhi Aaun To Ghar Achcha Nahi Lagta ,

Karun kuchbhi,Mai ab Duniya ko sab,Achcha hi lagta hai

Mujhe Kuch Bhi Tumhare Bin Magar Achcha Nahi Lagta"




Tuesday, February 18, 2014

Pyaar jab jism ki cheekho mein dafanho jaayein Dr. kumar vishwas very famous poem

Pyar jab jism ki cheekho mein dafan ho jaye odni is tarah uljhe ki kafan ho jaye

ghar ke aisas jab bazar ki sharto mein dhaleajnabi log jab hamrah ban ke sath chale

labon se asman tak sabki dua chubh jaye bheed ka sor jab kano ke pass ruk jaye

sitam ki mari hui waqt ki in ankhin mein nami ho lakh magar fir bhi muskurayeinge


andhere waqt mein bhi geet gayenge.....................................................................




log kehte rahein is raat ki subah hi nahi keh de suraj ki rosni ka tajurba hi nahi wo ladaye

ko bhale aar par le jayen loha le jaye wo lohe ki dhar le jaye jiski chaukhat se taraju tak

ho unpar girwi us adalt mein hamein bar bar le jaye hum agar gunguna bhi denge to wo

sab ke sab humko kagaz se hara kar bhi har jayenge andhere waqt mein bhi geet gayen

jayenge .........................................................

Monday, February 17, 2014

hindi kavita tumko suchit ho - Dr. kumar vishwas

Dr. Kumar vishwas latest poem tumko suchit hoon. 

yashswi surya amber chadh rha hain tumko suchit hoon.....

vijay ka rath su-path per badh rha hain tumko suchit hoon...

awachit patra mere jo talak khole nahi tumne...

smoocha vishwa unko padh rha hain tumko suchit hoon...

Nawal hokar purana jaa rha hain tumko suchit hoon

punhe yovan suhana aa rha hain tumko suchit hoon..








jinhe sun kar kabhi tumne kha tha maun hoo jaao..

woh dhun saara jamana gaa rha hain tumko suchit hoon..